जानिए कैसे करें अरंडी की खेती और इसमें लगने वाले रोगों को खत्म करने का तरीका
[et_pb_section fb_built=”1″ theme_builder_area=”post_content” _builder_version=”4.14.7″ _module_preset=”default”][et_pb_row _builder_version=”4.14.7″ _module_preset=”default” theme_builder_area=”post_content”][et_pb_column _builder_version=”4.14.7″ _module_preset=”default” type=”4_4″ theme_builder_area=”post_content”][et_pb_text _builder_version=”4.14.7″ _module_preset=”default” theme_builder_area=”post_content” hover_enabled=”0″ sticky_enabled=”0″]
भारत अरंडी के तेल का सबसे बड़ा उत्पादक और निर्यातक है। इसकी मांग आज के समय में काफी बढ़ गयी है। किसान भाइयों के लिए अरंडी की खेती काफी फायदें का सौदा है। क्योंकि यह तिलहनी फसल है और इसकी बिक्री भी आसानी से हो जाती है। अगर तिलहनी फसल की बात किया जाये तो इसका मुनाफा काफी अच्छा होता है। कम जोखिम में आप इससे ज्यादा कमाई कर सकते है।
अरंडी के द्वारा वानस्पतिक तेल प्राप्त होता है। यह खरीफ की मुख्य व्यवसयिक फसल में से एक है। इसके तेल के द्वारा साबुन, रंग, वार्निश, कपड़ा रंगाई उद्योग, हाइड्रोलिक ब्रेक तेल, प्लास्टिक, चमड़ा उद्योग आदि कामों में प्रयोग किया जाता है। इसकी पत्तियां रेशम के खाद बनाने और कीटों के पालनें के काम आती है। इसकी खेती (Farming) को सिंचित और असिंचित दोनों विधियों से की जाती है। इसकी जड़ें काफी गहराई तक जाती है , जिसमें सूखा सहन करने की काफी क्षमता होती है।
अरंडी की खेती सबसे ज्यादा शुष्क और बारानी इलाकों की गर्म और नमी वाले जगह पर की जाती है। भारत में इस तरह की जलवायु लगभग सभी राज्यों की होती है। इसलिए अगर तिलहनी फसल की बात करें तो सबसे ज्यादा अरंडी की खेती की जाती है। आज के इस ब्लॉग में हम आपको बताएँगे कि अरंडी की उत्तम खेती कैसे की जाती है और किसान भाई किस तरह से इससे लाभ कमा सकते है।
और पढ़े –: जानिए फसलें कितने प्रकार की होती है और कैसे की जाती है उनकी खेती
आप यह ब्लॉग GEEKEN CHEMICALS के माध्यम से पढ़ रहें है। हम आप तक कृषि जगत से जुडी सभी छोटी – बड़ी जानकारी उपलब्ध करवाते है। भारत में हम सबसे अच्छा कीटनाशक भी प्रदान करते है। जिसके द्वारा भारत के किसान फसल का बेहतर तरीके से उत्पादन कर सकते है। आप हमारे कीटनाशक को अपने नजदीकी स्टोर से भी आसानी से खरीद सकते है।
उपयुक्त जलवायु और मिट्टी
अरंडी की खेती सभी प्रकार के जलवायु में की जा सकती है। इसकी बुवाई खरीफ व कटाई रबी के मौसम में सबसे ज्यादा होती है। जिसके वजह से ठंड के मौसम में फसल पर पाले का भी प्रभाव खूब पड़ता है। इसकी खेती के लिए खेत में ज्यादा जलभराव नहीं होना चाहिए। अगर हम इसके तापमान की बात करें तो 20 से 27 डिग्री सेन्टिग्रेड तापमान और कम आद्रता की जरूरत पड़ती है। फूल और फल की वृद्धि के समय इसे अधिक तापमान की जरुरत पड़ती है। इसके फसल के लिए बलुई दोमट मिट्टी अच्छी नहीं मानी जाती है। वहीँ अगर भूमि ऊसर या फिर क्षारीय है तो भी इसकी खेती नहीं करनी चाहिए।
अच्छे फसल उत्पादन के लिए जमीन का पीएच मान 5 से 6 के बीच होना चाहिए। किसान को इसके फसल के लिए हमेशा देखभाल करने की भी जरूरत है।
मिश्रित फसल पद्धति
किसान ज्यादातर अरंडी की खेती मिश्रित फसल के रूप में उगाते है। खरीफ के फसल की खेती सोयाबीन, उड़द, मूँग, लोबिया, गुआरफली और अरहर के साथ की जाती है जिसमें आप अरंडी की मिश्रित खेती कर सकते है। कृषि एक्सपर्ट के मुताबिक मिश्रित फसल के लिए अरंडी का 5 से 7 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज सबसे अच्छा माना जाता है।
बिजाई का समय
अरंडी की खेती के लिए कृषि एक्सपर्ट के मुताबिक जून से जुलाई का होता है। किसान भाइयों को जुलाई के अनत और अगस्त के प्रथम सप्ताह तक इसकी खेती अवश्य कर लेनी चाहिए। क्योंकि इस समय खेती करने पर पाले का प्रकोप कम दिखाई पड़ता है। वहीं अरंडी के फसल में पाले के आलावा आप खरपतवार का भी रोकथाम आसानी से कर सकते है। वहीँ दिसंबर के दूसरे सप्ताह से लेकर जनवरी के अंत तक अंरडी को भरपूर पानी देना चाहिए , जिससे पाले का प्रभाव कम होता है।
अरंडी की फसल की सिंचाई
अरंडी की फसल को बोने के बाद ज्यादा पानी की जरूरत नहीं पड़ती है लेकिन आप शुष्क दशा को देखकर 20 -25 दिनों के बाद सिचाई कर सकते है। सिचाई करने पर कृषि एक्सपर्ट बताते है कि इसके पैदावार में काफी इजाफा होता है। वहीं आरंडी की फसल को मिट्टी की जलधारण क्षमता के अनुरूप 3 से 4 सिंचाइयों से लेकर 7 से 8 तक सिंचाइयाँ करना चाहिए। इसलिए हमेशा अरंडी की फसल के लिए बिजाई से 50-60 और 80-95 दिनों बाद अगर खेत में नमी न दिखाई पड़ें तो सिचाई जरूर करना चाहिए। इससे फसल में लगने वाले रोग भी आसानी से खत्म हो जाते है।
अरंडी के फसल में लगने वाले प्रमुख रोग
पत्ती धब्बा एवं झुलसा रोग
झुलसा रोग अरंडी की फसल के लिए बहुत ही हानिकारक है। बुवाई के 40 -45 दिनों के बाद आप इनका प्रकोप अपने फसल पर आसानी से देख सकते है। जब भी यह आपके फसल पर हमला करते है तो निचली पत्तियों पर छोटे हल्के भूरे से काले रंग के सकेन्द्री वलय धब्बे दिखाई पड़ने लगते है। यह ज्यादातर दिसंबर महीने के अंत तक पुरे पौधे को झुलसा देते है। धीरे – धीरे इनका प्रकोप टहनियों और फलियों पर भी होता है, जिसकी वजह से फसल की उत्पादन क्षमता घट जाती है। इसकी वजह से तेल के मात्रा में भी काफी कमी आती है।
बचाव
इस रोग से बचाव के लिए GEEKEN CHEMICALS के द्वारा बने हुए कीटनाशक का प्रयोग कर सकते है। अरंडी की फसल में लगने वाले झुलसा रोग के लिए GEEKEN लेकर आया है Ribban (Captan 70% Hexaconazole 5% WP) जो बहुत ही ज्यादा असरदार है और झुलसा रोग को जल्द से जल्द खत्म कर देता है।
उखटा रोग
इस रोग का प्रकोप लगभग सभी फसलों में होता है। ज्यादातर यह मौसम के बदलाव के कारण ही फैलता है। उकठा रोग के पहचान की बात करें तो इसके प्रकोप से पौधे के ऊपरी पत्तियां और पौधो के मुलायम भाग सूखने लगते है और जड़ के पास देखने पर यह अंदर काले, कत्थई या लाल रंग के धागों के जैसे दिखाई पड़ते है। जब भी यह रोग अरंडी की फसल में दिखाई पड़ते है पूरी की पूरी पैदावार को ही नष्ट कर देते है। किसान इस रोग के प्रकोप से हमेशा परेशान रहते है। लेकिन अब आपका साथी GEEKEN CHEMICALS इस रोग के निवारण के लिए एक बेहतरीन तरीके का कीटनाशक लेकर आया है। जिससे आप अपनी पैदावार को बढ़ा सकते है।
बचाव
जब भी इस रोग का असर आपके फसलों में दिखने लगे तो आप तुरंत इसपर GEEKEN CHEMICALS के द्वारा बना कीटनाशक प्रयोग करें। GEEKEN CHEMICALS उकठा रोग के लिए लेकर आया है सबसे बेहतरीन कीटनाशक Kenzim (Carbendazim 50% WP) जिसका प्रयोग करने के कुछ दिन बाद ही आपको इसका असर दिखाई पड़ने लगेगा। अगर आप जल्द से जल्द इस कीटनाशक का प्रयोग करते है तो यह रोग पूरी तरह से खत्म हो जायेगा नहीं तो किसान भाइयों पूरी फसल बर्बाद हो जाएगी। वहीँ कृषि एक्सपर्ट बताते है कि इस रोग से बचने के लिए हमेशा फसल चक्र अपनाना चाहिए और एक ही फसल की खेती बार – बार नहीं करना चाहिए। वहीँ फसल से रोगी पौधे को भी उखाड़ कर फेक देना चाहिए।
पाले का प्रभाव
अरंडी के फसल पर पाले का प्रकोप सबसे ज्यादा होता है। जब भी पाला इसपर आक्रमण करता है पूरी की पूरी फसल खत्म हो जाती है। इसलिए अरंडी की फसल को पाले से भी बचाकर रखना चाहिए।
अरंडी की फसल की कटाई
अरंडी की फसल मुख्य रूप से 90 से 120 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। जिसके बाद किसान आसानी से इसकी कटाई कर सकते है। गर्मी में इसके गुच्छों की कटाई 5 से 20 दिनों के अन्तराल पर और सर्दी में 25 से 30 दिनों के अन्तराल पर कर लेना चाहिए। जब इसके गुच्छे पिले पड़ने लगें तो समझ जाइये की फसल पककर तैयार हो गयी है। किसान जब भी इसके गुच्छे की कटाई करें सूखने के लिए जरूर रखें। कभी भी सिकरों के पूरा पकने का इंतज़ार नहीं करना चाहिए नहीं तो इसके चटकने से पैदावार में कमी आती है। यह तकनीक अपनाकर किसान आसानी से अपने फसल की पैदावार को बढ़ा सकते है और अच्छा मुनाफा कमा सकता है।
और पढ़े –: जानिए कैसे उगाये गमले में कद्दू का पौधा और कितने दिनों में उगता है कद्दू का बीज
निष्कर्ष
आज हमने जाना की अरंडी की खेती कैसे की जाती है और इसके रोगों को कैसे खत्म कर सकते है। आशा है कि किसान भाइयों को हमारा यह ब्लॉग बहुत पसंद आया होगा। आप हमारे इस ब्लॉग को आसानी से अपने सोशल मीडिया पर शेयर भी कर सकते है। अगर आप भी अरंडी की खेती कर रहें है तो यह ब्लॉग आपके लिए काफी कामगार साबित हो सकता है। वहीँ आप इसके फसल में लगने वाले कीटों और रोगों को खत्म करने के लिए GEEKEN CHEMICALS के द्वारा बनाये हुए कीटनाशक का प्रयोग कर सकते है। आप हमारा कीटनाशक ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरीके से खरीद सकते है। GEEKEN CHEMICALS से जुडी अन्य जानकारी के लिए आप हमें कॉल (+91 – 9999570297)भी कर सकते है।
[/et_pb_text][/et_pb_column][/et_pb_row][/et_pb_section]