सरसों को हम राई की भी कहते है इसकी खेती भारत में प्रमुखता से की जाती है। इसकी खेती से कम लागत में अच्छा पैसा कमाया जा सकता है। अगर इसकी खेती की बात करें तो सबसे ज्यादा राजस्थान के माधवपुर, भरतपुर सवई, कोटा, जयपुर, अलवर, करोली आदि जिलों में की जाती है। इसका उपयोग तेल निकालनें के लिए करते है। इसके अलावा इसकी खली का प्रयोग हम पशु को खिलाने के लिए करते है। सरसों रबी के मौसम में उगाई जानें वाली फसल है। इसकी खेती सिचित व असिंचित दोनों जगहों पर की जा सकती है।

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सरसों के प्रकार (Mustard Types in Hindi)

भारत में दो प्रकार के सरसों को उगाया जा सकता है , जिसमें पहली है काली सरसों और दूसरी है पीली सरसों। जिसकी बुवाई मिट्टी और मौसम के अनुसार की जाती है , जिससे अच्छी पैदावर मिल सके। लेकिन अगर सही मायनें में देखा जाये तो किसान काली और भूरी सरसों का उत्पादन करना पसंद करते है।

काली सरसो (Black Mustard)

किसान भाइयों काली सरसों के दानें गोल आकर में कड़े और पीली सरसों के मुकाबले बड़े बीज के होते है , इसका रंग कभी – कभी हल्का भूरा भी दिखाई पड़ता है। इसकी खेती करने से पैदावर ज्यादा देखनें को मिलता है। इसका प्रयोग ज्यादातर खानें वाले तेल के रूप में करते है और इसमें से निकलनें वाली खली जानवरों के खिलानें के काम आती है। इसकी खेती करके किसान भाई फसल को सीधे मंडी में बेच सकते है।

पीली सरसों (Yellow Mustard)

किसान भाइयों इसकी खेती भी भारत में प्रमुखता से की जाती है। पीली सरसों को हम राई भी कहते है , इसके दानें काले सरसों की तुलना में छोटे होते है साथ ही इसके स्वाद में अंतर होता है। जहाँ हम काले सरसों का प्रयोग तेल निकलनें के लिए करते है वहीँ राई के दानें का प्रयोग हम आचार डालनें और तड़का लगाने के लिए करते है। इन दोनों के गुण सामान होते है और दोनों में पोषक तत्व भी भरपूर मात्रा में पाई जाती है।

भारत में सरसों की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी जलवायु एवं तापमान

किसान भाइयों सरसों की खेती के लिए ठंड का मौसम सबसे अच्छा माना जाता है। इसके पौधे की वृद्धि के लिए 18 -24 डिग्री का तापमान होना जरुरी है। जब भी सरसों के पौधे से फूल निकलता है तो इस दौरान होने वाली बारिश इसके पैदावार को बहुत नुकसान पहुँचाती है। सरसों की खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी की जरूरत पड़ती है। इसकी खेती कभी भी क्षारीय तथा मृदा अम्लीय मिट्टी में नहीं करना चाहिए। इससे सरसों के पौधे को बहुत नुकसान पहुंचता है।

भारत में बोई जानें वाली सरसों की उन्नत किस्मे

पूसा बोल्ड

किसान भाइयों पूसा बोल्ड किस्म के बीज 125 -140 दिन में पैदावार प्रदानकरते है। इस किस्म के पौधे की फलियां मोटी होती है। दोस्तों इसके दानें से 37 -38 प्रतिशत तक ही तेल निकाला जा सकता है। किसान भाइयों पूसा गोल्ड प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 20 -30 किवंटल तक ही पैदावार देता है। लेकिन यह किस्म सबसे अच्छा माना जाता है।

वसुंधरा (R.H. 9304)

इस किस्म के सरसों के पौधे ऊँचे होते है। इसमें से निकलनें वाली फली सफ़ेद रोली चटखने प्रतिरोधी है। इसके पौधे 130 – 135 दिनों में पैदावार देने लगते है। इस किस्म से 20 -25 क्विंटल पैदावार की जा सकती है।

भारत में सरसों की फसल के लिए खेत की तैयारी

किसान भाइयों हमें बुवाई से पहले खेत को तैयार करना पड़ता है , जिससे सरसों की पैदावार अच्छे से प्राप्त की जा सके। इसके साथ ही किसान भाइयों सरसों की फसल के लिए भुरभुरी मिट्टी की आवश्यकता पड़ती है। किसान भाइयों सरसों की फसल खरीफ के फसल के बाद पैदा की जाती है , इसलिए खेत की अच्छे से जुताई जरुरी है। अगर किसान खेत की अच्छे से जुताई करेंगे तो पुरानी फसल के अवशेष भी खत्म हो जायेंगे।

खेत की जुताई के बाद उसे ऐसे ही छोड़ देना चाहिए , जिससे खेत की मिट्टी में धूप अच्छे से लग सके। किसान भाइयों खेत की जुताई आप अच्छे से और तिरछी कर सकते है। जुताई के बाद किसान भाई पाटा लगा सकते है , जिससे खेत समतल हो जायेगा और जल भराव की भी समस्या खत्म हो जाएगी। अगर आप हमारे बताए हुए तरीके से खेत की जुताई करते है तो निश्चित ही अच्छी पैदावर देखनें को मिलेगी।

भारत में सरसों की बुवाई का सही समय और तरीका

किसान भाइयों हमें सरसों की बुवाई अक्टूबर से लेकर दिसंबर के प्रथम सप्ताह तक कर सकते है। यह समय सिंचित क्षेत्रों के लिए है। वहीँ सरसों की फसल के लिए 25 से 27 डिग्री तापमान का होना भी बहुत जरुरी है। किसान भाइयों सरसों की बुवाई कतारों में की जाती है। कतारों को तैयार करने के लिए 30 सेमी की दूरी का होना जरुरी है। इसके बाद 10 सेमी की दूरी को रखते हुए सरसों के बीजों को लगाना चाहिए।

कब करें सरसों के पौधों की सिंचाई

किसान भाइयों सरसों के पौधे की रोपाई हम ठंड के मौसम में करते है , इसलिए इसके पौधे को ज्यादा सिचाई की जरूत नहीं पड़ती है। अगर किसान भाई सही समय पर सिचाई करें तो इसकी अच्छी पैदावर प्राप्त हो सकती है। किसान भाइयों इसकी पहली सिचाई आप बीज को बोने के बाद कर सकते है। दूसरी सिचाई कम से कम 60 -70 दिनों के बाद करना चाहिए। अगर इस बीच खेत में पानी की जरूरत है तो सिंचाई कर सकते है।

सरसों के खेत में खरपतवार नियंत्रण

किसान भाइयों सरसों के पौधे में लगनें वाले खरपतवार को खत्म करना भी हम सभी जिम्मेदारी है। इसके खरपतवार को खत्म करने के लिए आप निराई -गुड़ाई कर सकते है। सरसों के पौधे की पहली गुड़ाई कम से कम 25 -30 दिन के बाद करना चाहिए। इसके बाद आप समय – समय पर इसकी गुड़ाई कर सकते है , जिससे खरपतवार खत्म हो जाएँ।

अगर फिर भी सरसों की फसल से खरपतवार खत्म नहीं हो रहें है तो आप Top Agro Chemical Companies in India के द्वारा निर्मित खरपतवारनाशी कैमिकल का प्रयोग कर सकते है। भारत में GEEKEN CHEMICALS सबसे खरपतवारनाशी कैमिकल बनाने वाली कंपनी है। GEEKEN CHEMICALS ने सरसों के खरपतवार को खत्म करने के लिए बनाया है ///////// जिसके प्रयोग से न सिर्फ सरसों के खरपतवार खत्म होंगे बल्कि पैदावार भी काफी अच्छी होगी।

भारत में सरसों के फसल की कटाई, पैदावार और लाभ

किसान भाइयों सरसों के फसल की कटाई हम 125 से 150 दिनों में कर लेते है। जिसके बाद इसकी कटाई की जा सकती है। किसान भाइयों को यह ध्यान देना होगा की अगर सही समय पर इसकी कटाई नहीं की गई तो फलियां चटकनें लगती है और इसके पैदावार में भी कमी आ जाती है। जब भी सरसों की फलियां पीले रंग की दिखनें लगें तो कटाई कर लेना चाहिए। आज कल बाजारों में भी सरसों की ,मांग बढ़ गई है , जिससे किसान भाई इसकी खेती करके अच्छी कमाई कर सकते है।

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निष्कर्ष

किसान भाइयों आज के इस ब्लॉग में हमनें जाना की सरसों की खेती कैसे की जा सकती है। आशा है की आप सभी को हमारा यह ब्लॉग पसंद आया होगा। आप हमारे इस ब्लॉग को अपने सोशल मीडिया पर शेयर जरूर करें जिससे और भी लोग अपने खेती के प्रति जागरूक हो सकें। किसान भाइयों इसके अलावा आप GEEKEN CHEMICALS के द्वारा बनें रासायनिक कैमिकल को खरीद सकते है और अपने खेतों में फैलनें वाले खरपतवार , कीट , रोग को खत्म कर सकते है। अगर आप GEEKEN CHEMICALS के रासायनिक प्रोडक्ट को खरीदना चाहते है तो कॉल (+91 – 9999570297) कर सकते है।