देश के उत्तरी-पश्चिमी भागों में गेहूँ बहुतायत से उगाया जाता है। वहां ‘गुल्ली डंडा’ (फैलेरिस माइनर) और जंगली जई से गेहूँ की फसल को काफी नुकसान होता है। कहीं-कहीं तो यह नुकसान 70 से 80 प्रतिशत तक हो जाता है। गेहूँ में उगे इन खरपतवारों को तब तक आसानी से नहीं पहचाना जा सकता, जब तक कि इनमें फूल न खिल जाए। हर साल इन खरपतवारों के काफी मात्रा मे बीज बनते हैं और भूमि में मिल जाते है। अगले वर्ष खरपतवारों की संख्या कई गुना अधिक हो जाती है।
धान के बाद देश में सबसे अधिक क्षेत्र में किसी चीज की खेती अगर की जाती है तो वह है गेहूं। गेहूं की खेती में अच्छी पैदवार प्राप्त करने के लिए आवश्यक है कि समय पर इसमें लगने वाली खरपतवार का नियंत्रण किया जाए | गेहूं की फसल में मुख्यतः दो तरह के खरपतवार लगते हैं एक तो संकरी पत्ती वाले एवं दुसरे चौड़ी पत्ती वाले | गेहूं में लगने वाले मुख्य खरपतवार जैसे-मोथा, बथुआ, गुल्ली डंडा, खरतुवा, हिरनखुरी कृष्णनील आदि खरपतवारों का नियंत्रण रसायनों द्वारा किया जा सकता है | गेहूं की फसल में संकरी पत्ती के खरपतवारों के साथ चौड़ी पत्ती के खरपतवारों की समस्या भी होती है। गेहूं की फसल में अक्सर 25 से 30 दिनों के भीतर खरपतवार की समस्या बढ़ने लगती है। इसकी वजह से अक्सर गेहूं की पैदावार में 35 से 40 % तक की कमी महसूस की जाती है।
यदि आप गेहूं कि खेती कर रहें है तो उसमें लगने वाले खरपतवार की जानकारी यहां से प्राप्त कर सकते है।
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गेहूं के कुछ खरपतवार निम्न है
गुल्लीडंडा
जिन क्षेत्रों में गेहूँ-धान फसलचक्र अपनाया जाता है, वहां गुल्लीडंडा बहुत उगता है। शुरू की अवस्था में यह गेहूँ के पौधे की तरह ही दिखाई देता है। लेकिन सावधानी से देखने पर पता चलता है कि गुल्लीडंडा में कल्ले बहुत निकलते है। इसके पौधों का रंग हल्का हरा होता है। फूल आने की अवस्था में यह अच्छी तरह पहचाना जा सकता है। इसके लिए आप GEEKEN CHEMICALS का बना खरपतवार नाशक Glodina (Clodinafop- Propargyl 15% WP) और Hathiyar (sulfosulfuron 75% WG) का प्रयोग कर सकते है।
मंडूसी की पहचान
गेहू की खेती में इसकी पहचान काफी मुश्किल होता है। लेकिन किसान अगर ध्यान से देखें तो इसका पता आसानी से लगा सकते है। मेडुसी के पौधे गेहू की तरह ही होते है। मंडूसी में लैग्यूल तथा गेहूँ में आरिकल्ज ज्यादा विकसित होते है। इसके अतिरिक्त मंडूसी का तना जमीन के पास से लाल रंग का होता है। तना तोड़ने या काटने पर इसके पत्तों, तने और जड़ों से भी लाल रंग का रस निकलता है जबकि गेहूँ के पौधे से निकलने वाला रस रंगविहीन होता है। इसके लिए आप GEEKEN CHEMICALS का बना खरपतवार नाशक Glodina (Clodinafop- Propargyl 15% WP) और Hathiyar (sulfosulfuron 75% WG) का प्रयोग कर सकते है।
गेहू के खरपतवार का नियंत्रण कैसे करें
1. गेहू के खरपतवार की रोकथाम के लिए हमेशा अच्छे बीज का चुनाव करें। 2. खरपतवारनाशी का अच्छे से चुनाव करें और समय – समय पर इसका छिड़काव करें। 3. गेहू के खरपतवार को ख़त्म करने के लिए हमेशा अच्छे खरपतवारनाशी का प्रयोग करें। 4 . गेहूं से मंडुसी का प्रभाव ख़त्म करने के लिए पहले बुवाई करनी चाहिए।
कहाँ और कैसे कर सकते है इसका प्रयोग
चौड़े पत्तेदार खरपतवार के नियंत्रण के लिए आप इसका प्रयोग आसानी से कर सकते है। Geeken Chemicals India Limited इस तरह से केमिकल को बनाता है जिससे न पौधों को नुकशान पहुँचता है और न ही प्रकृति को। Hathiyar (sulfosulfuron 75% WG) और Glodina (Clodinafop- Propargyl 15% WP) समूह सम्बन्धित खरपतवारनाशक है। इसका इस्तेमाल आप गेहू के लिए करके अपने फसल को सुरक्षित रख सकते है। Hathiyar (sulfosulfuron 75% WG) और Glodina (Piroxofop-Propanyl 15% WP) एक चुनिन्दा एवं अर्तप्रवाही खरपतवारनाशक है जिसका प्रयोग कई प्रकार के चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों के नियन्त्रण के लिए किया जाता है। यह बहुत जल्द अवशोषित होकर खरपतवार के अंदर चला जाता है। इसका प्रयोग गेहूँ की बुआई के 25-35 दिनों के अन्दर तथा धान में रोपाई के 5-10 दिन के अन्दर कर सकते है।
Hathiyar (sulfosulfuron 75% WG) और Glodina (Clodinafop- Propargyl 15% WP
) की विशेषताएं
• गेहूँ की फसल के लिए सुरक्षित उत्पाद है और यह उच्चगुणवत्ता वाले पैदावार देता है। • पर्यावरण , जानवर और इंसान के लिए यह सुरक्षित उत्पाद है , लेकिन फिर भी इसका प्रयोग करते समय सावधानी जरूर बरतनी चाहिए। • यह चुनिंदा खरपतवार को खत्म करने के लिए सबसे अच्छा खरपतवारनाशी है। • शीघ्र ही पौधे की पत्तियों और जड़ों द्वारा अवशोषित हो जाता है। इसके प्रयोग के समय मौसम साफ होना जरुरी है।
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निष्कर्ष
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