जानिए काली मिर्च की खेती करने का तरीका , जिससे किसान को होगा लाखों का फायदा

Published Date: October 7, 2022

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काली मिर्च को हम सभी सदाबहार पौधे के रूप में देखते है।  इसके पत्ते को जब भी आप देखेंगे  हरे ही दिखाई पड़ेंगे। इसका सबसे ज्यादा उपयोग हम मसाले के रूप में करते है।  इसके आलावा इसका उपयोग आयुर्वेद और यूनानी चिकित्सा के रूप में भी किया जाता है।  इसके इस्तेमाल से पेट से जुड़े रोग और आखों से जुड़े रोग नहीं होते है।  इसलिए विदेश के लोग इसे खूब खाना पसंद करते है। काली मिर्च के खेती की शुरुआत दक्षिण भारत से हुई थी। अगर इसके सबसे बड़े उत्पादक राज्यों की बात किया जाये तो केरल, कर्नाटक और तमिलनाडू है। वहीं महाराष्ट्र, अंडमान निकोबार द्वीप और उत्तर पूर्वी राज्यों में भी इसकी खेती मौसम के हिसाब से होती है।  दक्षिण भारत अगर आप घूमने गए है तो देखंगे की हर घर में इसका पौधा आपको देखने के लिए मिल जायेगा।  अगर अपने देश की बात करें तो यहाँ भी इसकी पैदावार बहुत अच्छे से की जाती है।   भारत काली मिर्च का सबसे बड़ा निर्यातक भी है। 

 काली मिर्च की खेती हम पर्याप्त वर्षा और आर्द्र उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में करते है।  इसके लिए दक्षिण भारत की मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है।  यही वजह है की यहाँ पर इसकी खेती सबसे ज्यादा होती है।  इसको हम कलम और बीज दोनों तरीके से उगाते है। लेकिन अगर कृषि एक्सपर्ट कि मानें तो कलम विधि से इसकी खेती करने पर पैदावार काफी अच्छी होती है।  काली मिर्च का पौधा भी बहुत जल्दी ग्रोथ करता है। वहीँ मिट्टी में इसकी जड़ें 2 मीटर तक अंदर रहती है।  इसका पौधा 3 साल बाद पैदावार देना शुरू करता है। इसकी खेती को हम बागवानी तरीके से करते है।

 जिसकी वजह से काली मिर्च के पौधों को एक बार लगाने के बाद उससे हम कई सालों तक पैदावार प्राप्त कर सकते है।  इसकी रोपाई भी हम खेतों में एक बार ही करते है। जिसकी वजह से पौधे में लगने वाला खर्च भी कम हो जाता है।  किसान इसकी खेती को मुनाफे के तौर पर देखते है।  इसकी प्रमुख वजह यह है कि बाजार में काली मिर्च 400 रूपये प्रति किलो के हिसाब से मिलती है।  सबसे बढ़िया बात यह है कि इसका एक पेड़ साल में 6 किलो से ज्यादा फल दे सकता है।  अगर आप भी इसकी खेती करना चाहते है तो आज हम आपको इसकी सम्पूर्ण जानकारी प्रदान करेंगे।

 आप यह ब्लॉग GEEKEN CHEMICALS के माध्यम से पढ़ रहें है।  GEEKEN CHEMICALS फसलों में लगने वाले कीड़ों , खरपतवारों , फफूदी को खत्म करने के लिए बेहतर तरीके का कीटनाशक बनाता है। भारत के किसान हमारे प्रोडकट को काफी समय से प्रयोग कर रहें है और अपने फसलों में लगने वाले हानिकारक कीटों को खत्म कर रहें है।  अगर आप भी अपने फसल के अनुसार हमारे कीटनाशक को खरीदने के इच्छुक है तो इसे ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरीके से खरीद सकते है। हमारा कीटनाशक बाजारों में भी आसानी से उपलब्ध है।

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 काली मिर्च की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी

 किसान भाइयों अगर आप काली मिर्च की खेती कर रहें है तो आपके लिए  लाल लैटेराइट मिट्टी और लाल मिट्टी दोनों ही सबसे अच्छी मानी जाती है।  इस तरह की मिट्टी में पानी लगने पर पौधों की जड़े गलने या फिर ख़राब होने की संभावना कम होती है।  अगर लाला मिट्टी नहीं है तो इसके आलावा भी हम और भी कई तरह की मिट्टी में हम इसकी खेती कर सकते है।  इसके लिए जमीन का पी.एच. का मान 5 से 6 के बीच बेहतर माना जाता है।  इसकी खेती को लेकर यह ध्यान रखें की जहाँ की मिट्टी में पानी के भरने पर पौधों की जड़ें गलने की समस्या हो वहां पर इसकी खेती न करें नहीं तो पौधों को नुकसान पहुँच सकता है।

 खेत की जुताई 

 इसके पौधे को हम खेत में एक बार ही बो सकते है।  जिसके बाद इसकी बेल 25 से 30 साल तक फल देती रहती है।  इसलिए जब भी इसकी खेती करें तो जुताई अच्छे से करें।  जुताई करने के बाद आप एक सामान दुरी पर लाइन में गड्डे बना दें। इसके सहारे आप बांस भी गाड सकते है जिससे बेल उनतक आसानी से पहुँच सकें। जब भी आप गड्ढा बनाये तो यह ध्यान दें कि इन गड्डों के बीच की दूरी 10 से 12 फिट होनी चाहिए। जिससे अगर इसमें खरपतवार दिखाई पड़ें तो इसकी जुताई कर सकें।  

 पौध तैयार करना

 काली मिर्च के बीज को हम सीधे ही खेत में नहीं लगा सकते है।  इसके लिए पौधे को पहले तैयार किया जाता है।  उसके कुछ समय के बाद ही खेतों में लगाया जाता है।  किसान इसके लिए कई तरह के विधि को अपनाता है। कुछ विधियों के बारें में जानकारी हम नीचे प्रदान कर रहें है।

 साधारण विधि (स्कोरेफिकेशन)

 इस विधि के माध्यम से हम जब भी बीजों को तैयार करते है इसके लिए सबसे पहले हम उपजाऊ मिट्टी को पॉलीथिन में भरकर किसी गमले में डालते है।  बीज को गमले में उगने से पहले उसे एक रात तक सिरका से मिले हुए पानी में भरकर रखते है। पानी में जब भी हम बीजों को रखते है तो कुछ बीज पानी के ऊपरी सतह पर आ जाते है उन्हें हम निकालकर फेक देते है।  जिसके बाद बचे हुए बीजों को ही रोपित किया जाता है और मिट्टी में पानी डालते है।  इस विधि से बीज को निकलने में सबसे कम समय लगता है और पैदावार भी अच्छी होती है।

 परंपरागत विधि

 इस विधि के माध्यम से अच्छी गुणवत्ता वाले पौधों को तैयार किया जा सकता है।  इस तरह से पौधों को उगाने पर अच्छे से गोबर की खाद डालकर मिक्स करते है , जिसके बाद इसे मिट्टी में गाड देते है।  इस विधि में यह ध्यान रखना चाहिए कि जहां भी पौधों को रखें सीधा – सीधा सूर्य का प्रकाश नहीं लगना चाहिए।  इसको लगाने का सबसे अच्छा समय मार्च का महीना होता है।  इस विधि से अगर आप मिर्च को ऊगा रहें है तो समय – समय पर पौधों को पानी देते रहना चाहिए।  जब प्ररोह से जड़ें बनना शुरू हो जाएं और शाखाएं बहार निकल आयें तो उन्हें खेतों में लगा सकते हैं। अगर आप इस तरह से पौधों की खेती कर रहें है तो पॉलीथिन को हटा दें।  लेकिन यह ध्यान रखें की इसको हटाते समय जड़ को नुकसान नहीं पहुंचना चाहिए। 

 पौधों को लगने वाले रोग 

 काली मिर्च के पौधों में रोग कवक और कीटों के माध्यम से ज्यादा लगते है।  इसलिए इसकी रोकथाम करना बहुत जरुरी है।  अगर समय से आप इसकी रोकथाम नहीं करते है तो आपको बहुत नुकसान का सामना करना पड़ सकता है। 

 फाइटोफ्थोरा रोग

 फाइटोफ्थोरा रोग का प्रभाव ज्यादातर शुरू में ही दिखाई पड़ता है।  इस रोग की वजह से मिर्च की जड़ें सड़ने लगती है।  इसके कारण ही पौधे की पत्तीयां और तने पर काले रंग के धब्बे दिखाई पड़ने लगते है। जिसके कुछ समय के बाद धब्बे का आकार बढ़ने लगता है और पत्तियां सड़कर टूट जाती है।  कुछ समय के बाद पौधा पूरी तरह से खत्म हो जाता है।  इसके  रोकथाम के लिए आपको GEEKEN CHEMICALS के द्वारा बना कीटनाशक का प्रयोग करना चाहिए।  

एन्थ्रेकनोज रोग

 लाल मिर्च में यह रोग कवक में माध्यम से ज्यादा फैलता है। इसमें पाए जाने वाला कोलोटोट्राइकम ग्लोयोस्पोरोयाड्स नामक कवक बहुत खतरनाक होता है।  यह पौधों की पत्तियों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुँचता है।  इस रोग के कारण पौधों की पत्तियों पर पिले भूरे रंग की चित्तियाँ बन जाती हैं। किसान भाई अगर समय रहते इस रोग से पौधों की देखभाल नहीं करते है तो , यह रोग पूरी फसल को नष्ट कर देता है।  अगर आपके खेत में भी इस तरह के रोग दिखाई पड़ें तो आप GEEKEN CHEMICALS के द्वारा बना हुआ कीटनाशक प्रयोग कर सकते है। यह कीटनाशक बाजारों में आसानी से उपलब्ध है। 

 पर्ण चित्ती रोग

  पर्ण चित्ती रोग का प्रकोप गर्मी में ज्यादा होता है।  यह रोग राइजोक्टोनिया सोलानी कवक के माध्यम से फैलता है। इसका प्रभाव हम पुरे पौधों पर देखते है।  इसकी वजह से पौधे की पत्तियां और तना काला पड़ने लगते है जिससे किसान भाइयों की फसल पूरी तरह से बर्बाद हो जाती है।  अगर आप भी इस रोग से बचाव करना चाहते है तो GEEKEN CHEMICALS से बना कीटनाशक अवश्य प्रयोग करें।  यह बहुत जल्द पेड़ों में लगने वाले रोगों को खतम करता है और फसल की पैदावार को बढ़ता है। 

 काली मिर्च की तुड़ाई

 काली मिर्च से ही हम सफ़ेद मिर्च बनाते है। इसकी वजह से इसकी तुड़ाई भी समय से करनी चाहिए।  इसके पौधों पर फूल मई और जून महीने में आ जाते है , जिसके बाद इसे तैयार होने में कम से कम 6 – 8 महीने तक का समय लगता है।  सफ़ेद और काली दोनों ही तरह की मिर्च एक ही पौधे पर लगते है इन्हे तोड़ने के बाद हम सफ़ेद और काला रूप देते है। 

 पैदावार और लाभ

 काली मिर्च की अगर हम बात करें तो इसके पौधे से 4-6 किलो तक पैदावार होती है।  ऐसे में किसान इसे बेचकर अच्छा पैसा कमा सकते है।  बस इस पौधे को देखभाल करने की ज्यादा जरूरत है। 

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 निष्कर्ष 

 आपने यहाँ पर जाना कि कैसे काली मिर्च की खेती की जाती है और उसमें लगने वाले रोग कौन – कौन से है।  आप यह ब्लॉग GEEKEN CHEMICALS के माध्यम से पढ़ रहे है।  हम आपके लिए कृषि से जुडी सभी तरह की जानकारी आसानी से उपलब्ध करवाते है। जिससे आप बेहतर ढंग से खेती कर सकें। अगर आप GEEKEN CHEMICALS के कीटनाशक को खरीदना चाहते है तो आप इसे ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरीके से खरीद सकते है। 

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