GEEKEN CHEMICALS :- चना की खेती हमारे देश में प्रमुखता से की जाती है। चना की खेती हम दलहनी फसल के रूप में करते है। भारत को इसलिए चना उत्पादन के रूप में सबसे बड़ा देश कहा जाता है। दलहनी फसलों में चना का अपना प्रमुख स्थान है। उत्तर से मध्य व दक्षिण भारतीय राज्यों में इसकी खेती प्रमुखता से की जाती है। इसकी खेती पूरे भारत में रबी के फसल के रूप में की जाती है। आज के इस ब्लॉग में हम आपको बताने वाले है कि चने की फसल में लगने वाले प्रमुख रोग कौन – कौन से और कैसे इन रोगों को खत्म किया जा सकता है।
किसान भाइयों चने की गुणवत्ता रोग की वजह से बहुत प्रभावित होती है। ऐसे में अगर समय रहते इन रोगों से बचाव नहीं किया गया तो यह पूरी तरह से नष्ट होने लगते है। चने में उत्तरी, उत्तर-पूर्व और पूर्वी भाग में रोग का प्रकोप ज्यादा होता है जबकि मध्य और मैदानी भागों में पानी की वजह से इसकी फसल खराब हो जाती है। ऐसे में किसान भाइयों को इस रोगों से फसल को बचाना चाहिए। किसान अगर समय रहते अपने फसल की सुरक्षा नहीं करते है तो फसल पूरी तरह से बर्बाद हो जाते है।
आप यह ब्लॉग GEEKEN CHEMICALS के द्वारा पढ़ रहें है। हम आपके लिए कृषि से जुड़ी जानकारी पहुचानें का काम करते है। किसान अगर बेहतर फसल उत्पादन और रोग , कीट खरपतवार के बिना पैदावार चाहते है तो GEEKEN CHEMICALS का प्रयोग कर सकते हैं। GEEKEN एक ऐसी कंपनी है जो भारत के किसानों को आसानी से व सस्ते दाम में कीटनाशक उपलब्ध करवाती है। GEEKEN CHEMICALS COMPANY के द्वारा बनें कीटनाशक को खरीदनें के लिए किसान अपने नजदीकी दूकान पर जा सकते हैं।
Contents
उकठा या उखेड़ा रोग
चना की फसल में लगने वाला यह प्रमुख रोग है। कृषि एक्सपर्ट के मुताबिक इस रोग के फैलने का प्रमुख कारण फ्यूजेरियम ऑक्सीस्पोरम प्रजाति साइसेरी नामक फफूद है। उकठा या उखेड़ा रोग प्रमुख रूप से मृदा तथा बीज के कारण फैलने वाली बीमारी है अक्सर इस रोग की वजह से फसल की काफी पैदावार कम होती है। यह बीमारी बिना पोषक या नियन्त्रक के जमीन के अंदर छः वर्षो तक जीवित रह सकते हैं। उकठा या उखेड़ा रोग वैसे तो सभी जगह पर फ़ैल जाते है लेकिन जिस जगह पर ठंड ज्यादा पड़ती है वहां यह रोग कम दिखाई पड़ते है।
उकठा या उखेड़ा रोग के प्रमुख लक्षण :-
चने की फसल में जब भी उकठा या उखेड़ा रोग लगता है तो चने के पौधे के ऊपरी हिस्सों की पत्तियां और डंठल झुक जाते हैं , जिसकी वजह से पैदावार कम होती है।
इस रोग के कारण चने का पौधा सूखने लगता है और मरने के लक्षण दिखाई पड़ते हैं। ऐसे में पौधे की सुरक्षा करना जरुरी है।
चने की फसल में जब इस तरह का रोग दिखाई पड़ता है तो पत्तियां सूखने लगती है और इनका रंग भूरा तने की तरह हो जाता है।
उकठा या उखेड़ा रोग के कारण वयस्क और अंकुरित पौधे जल्द ही मरने लगते है और भूमि की सतह में आंतरिक ऊतक भूरे या रंगहीन में हो जाते हैं।
रोकथाम-
1.चने की फसल में लगने वाले इस रोग को खत्म करने के लिए अक्टूबर से नवंबर के प्रथम सप्ताह में इसकी बुवाई कर दें।
2. चने की बुवाई से पहले गहरी जुताई कर दें , जिससे खेत में फैले पुराने खरपतवार पूरी तरह से खत्म हो सके।
3.चने की बुवाई हमेशा 8 से 10 सेंटीमीटर गहराई में करना चाहिए क्योंकि गहराई में इसका प्रभाव कम होता है।
4. आप इस रोग को खत्म करने के लिए GEEKEN CHEMICALS के द्वारा बनें कीटनाशक Ribban (Captan 70% + Hexaconazole 5% WP) का प्रयोग कर सकते हैं।
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शुष्क-मूल विगलन (ड्राई रूट रॉट)
किसान भाइयों चनें में तो वैसे कई रोग लगते है लेकिन इनमें मिट्टी जनित रोग प्रमुख है। चने की फसल में यह रोग राइजोक्टोनिया बटाटीकोला नामक कवक के कारण फैलता है। ड्राई रूट रॉट रोग मिट्टी की कमी होने पर और वायु के तापमान के बढ़नें पर इस रोग का प्रकोप ज्यादा होता है। किसान भाइयों अगर देखा जाये तो इस बीमारी का प्रकोप तन दिखाई पड़ता है जब पौधे में फूल और फलियां आने लगती है। ड्राई रूट रॉट का प्रकोप पहले तो कम होता है धीरे – धीरे इसका प्रकोप बढ़नें लगता है जिसकी वजह से पौधे की जड़ें अविकसित होकर काली पड़ने लगती है और कुछ समय के बाद सड़कर सुख जाती है।
चने की फसल में जब यह रोग लगता है तो चने के आंतरिक हिस्से में काले रंग की फफूदी दिखाई पड़ती है। पौधे में जैसे ही इस रोग का प्रकोप ज्यादा होता है तो पौधा पूरी तरह से सुखकर भूसे के जैसा हो जाता है।
रोकथाम-
- इस रोग से बचानें के लिए किसान भाइयों को हमेशा फसल चक्र अपनाना चाहिए।
- किसान भाइयों को चने के बीज का फरूंदनाशक द्वारा बीजोपचार करना चाहिए , इससे बीमारी को शुरुआत में ही रोका जा सकता है।
- चने की बुवाई समय पर करनी चाहिए क्योंकि फूल आने के बाद इसके सूखा पड़ने और तीक्ष्ण गर्मी बलाघात से जुडी बीमारी का प्रकोप बढ़ जाता है।
- किसान चाहे तो सिचाई के द्वारा इस रोग को नियंत्रित कर सकते है।
5 . अगर फसल में रोग का प्रकोप ज्यादा है तो top agricultural chemical companies in india के द्वारा निर्मित कीटनाशक का प्रयोग कर सकते हैं। आज के समय में GEEKEN CHEMICALS सबसे बेहतर तरीके का कीटनाशक बना रही है। ऐसे में किसान भाई GEEKEN CHEMICALS के द्वारा बनें Kenzeb (Mancozeb 75% WP) और Kenzim (Carbendazim 50% WP) का प्रयोग कर सकते हैं।
धूसर फफूंद (बोट्राइटिस ग्रेमोल्ड)
चने की फसल में धूसर फफूंद वोट्राइटिस साइनेरिया नामक रोग के कारण फैलता है। धूसर फफूंद अनुकूल वातावरण होने पर फैलता है ज्यादातर यह रोग पौधों में फूल आने और फसल के पूर्णरूप से विकसित होने पर दिखाई पड़ता है। इस रोग के लगने के कारण पौधों पर भूरे , काले रंग के धब्बे दिखाई पड़ने लगते हैं। धूसर फफूंद के कारण फूल झड़ जाते है और पौधे संक्रमित होने के बाद फलियां भी नहीं लगती हैं। चने की फसल में इसका सबसे ज्यादा प्रभाव शाखाओं एवं तनों पर दिखाई पड़ता है। शाखाओं एवं तनों पर इस फफूद के कारण पौधा सडनें लगता है और पैदावार पूरी तरह से प्रभावित हो जाती है।
किसान भाइयों जब इस रोग का प्रकोप होता है तो पौधे की टहनी सड़ने लगती है और कुछ समय के बाद टूटकर गिर जाती है। धूसर फफूंद रोग के कारण संक्रमित पौधों पर नीले रंग के धब्बे दिखाई पड़नें लगते है, जिसके कारन फलियों में दानें नहीं लगते और पैदावार पूरी तरह से प्रभावित हो जाती है।
रोकथाम-
- किसान अगर इस रोग से बचना चाहते है तो चने की बुवाई देर से करें क्योंकि चने की बुवाई देर से करने पर इस रोग का प्रकोप कम होता है।
- चना के ऐसे बीज का चुनाव करें जो रोग प्रतिरोधी हो।
- इस रोग से चनें की फसल को बचानें के लिए कतार से कतार की दूरी बढाकर बुवाई करें , जिससे फसल को अच्छे से धूप और प्रकश मिल सके।
- बीमारी के लक्षण दिखाई देते ही किसान भाई Top quality agro chemicals के द्वारा निर्मित कीटनाशक का प्रयोग करना चाहिए। भारत की बात करें तो GEEKEN CHEMICALS सबसे अच्छे तरीके का कीटनाशक बनाता है। GEEKEN CHEMICALS ने इस रोग को खत्म करने के लिए बनाया है Kenzeb (Mancozeb 75% WP) और Kenzim (Carbendazim 50% WP) जो जल्द से जल्द अपना प्रभाव शुरू करता है और उत्पादन क्षमता बढ़ाता है।
मोजेक और बौना रोग
चने का उत्पादन भारत के बहुत बड़े क्षेत्रफल में किया जाता है लेकिन पिछले कुछ समय से इसमें रोग का प्रकोप ज्यादा हो रहा है ऐसे में फसल की पैदावार पूरी तरह से प्रभावित हो रही है। चने में ज्यादतर मोजेक और बौना रोग का प्रकोप होता है , जिसकी वजह से चने की फसल पूरी तरह से प्रभावित हो जाती है।
किसान भाइयों अगर हम मोजेक रोग की बात करें तो इसके प्रकोप से फुनगियाँ मुड़कर सूखने लगती है और पौधा विषाणु रोग के कारण छोटे , पीले , नारंगी तथा भूरे रंग के दिखाई पड़नें लगते है। कृषि एक्सपर्ट की मानें तो मिट्टी में लोहे की कमी और लवण की अधिकता की वजह से इस रोग का प्रकोप होता है।
रोकथाम-
किसान अगर इस रोग से छुटकारा पाना चाहतें है तो Agrochemical Company In India के द्वारा निर्मित कीटनाशक का प्रयोग कर सकते हैं। GEEKEN CHEMICALS भारत की सबसे अच्छी कीटनाशक बनाने वाली कंपनी में से एक है। इस तरह के रोग को खत्म करने के लिए GEEKEN CHEMICALS ने Gee Super (Sulphur 80% WDS) बनाया है। जो बहुत कम समय में अपना असर शुरू करता है और फसलों की उत्पादन क्षमता को बढ़ाता है।
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निष्कर्ष :-
आज के इस ब्लॉग में हमनें चने की फसल में लगने वाले प्रमुख रोगों के बारे में जाना। आशा है कि किसान भाइयों को हमारा यह ब्लॉग पसंद आया होगा इसलिए ब्लॉग को शेयर करना न भूलें। अगर किसान कृषि जगत से जुडी किसी भी तरह की जानकारी चाहतें है तो हमारे कमेंट बॉक्स में पूछ सकते हैं। GEEKEN CHEMICALS के कीटनाशक को खरीदनें के लिए कॉल (+91 – 9999570297) करें।